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चंद्रमौलेश्वर महादेव

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चन्द्रमौलेश्वर महादेव का इतिहास: -

घोलका में स्थित इस अनोखे और बेहद खास मंदिर का नाम चंद्रमौलेश्वर महादेव है।  इसके अलावा इस मंदिर को नागनाथ महादेव ( परपोटीया ) के साथ-साथ चंद्रेश्वर महादेव के नाम से भी जाना जाता है।  माना जाता है कि ये मंदिर लगभग 500 साल पहले बनाया गया था।  इस मंदिर को बड़ौदा ( वडोदरा ) के तत्कालीन राजा सयाजीराव गायकवाड़ ने बनवाया था।
 
स्वयं भगवान सवामिनारायण  ने यहां आकर भगवान श्री चन्द्रमौलेश्वर महादेव की पूजा की और अपने संप्रदाय के सत्संगियों को शिव पूजा की महिमा का वर्णन किया था। और पुजारी श्री का सन्मान किया हुआ है।

मंदिर के नाम के पीछे का कारण : -

महादेव जी ने समुद्र मंथन मे से निकलने वाले चंद्रमा को अपने सिर पर धारण किया है इसलिए उन्हें चंद्रमौलेश्वर भी कहा जाता है।  यहा भी जो शिवलिंग है उसके उपर मध्य वाले शिवलिंग मैं चंद्रमा की कला के दर्शन होते है। ये चन्द्रदर्शन चन्द्रमा की कला के साथ-साथ कम और ज्यादा होता रहता है। इस तरह के चंद्रमा (चंद्रदर्शन) के शिवलिंग पर प्रभाव के कारण इस शिवलिंग को चंद्रमौलेश्वर कहा जाता है।  ऐसा शिवलिंग दुनिया में और कहीं नहीं है ।

मंदिर की विशेषताएं: -

इस मंदिर को ज्यादा विशेष और  महत्वपूर्ण यहा मंदिर मै रहा  शिवलिंग बनाता है। क्योंकि यह शिवलिंग स्वतःस्फूर्त है और ये जमीन मे से निकला हुआ है।  यह शिवलिंग पांडव काल से है ऐसा माना जाता है।  इस शिवलिंग की एक और विशेषता यह है कि इसके जैसा शिवलिंग दुनिया में कहीं और नहीं पाया जाता है।  यह शिवलिंग स्फटिक से बना है और इसका आकार पानी के बुलबुले ( परपोटे ) जैसा है इसलिए इस मंदिर को परपोटीया महादेव के नाम से भी जाना जाता है।  प्राकृतिक स्फटिक का शिवलिंग दुनिया में कहीं और नहीं पाया जाता है क्योंकि प्राकृतिक स्फटिक बनने में लाखों साल बीत जाते हैं लेकिन भगवान शिव की कृपा से इस प्रकार का प्राकृतिक स्फटिक का शिवलिंग पूरी दुनिया में केवल यहीं पाया जाता हैं।  अन्य विशेषता में, यह शिवलिंग आकार के साथ साथ संख्या के मामले में भी  अन्य शिवलिंगों से भिन्न है। अन्य मंदिरों में केवल एक शिवलिंग होता है जबकि यहा स्फटिक के पानी के बुलबुले जैसे आकार के कई सारे शिवलिंग मिलकर एक मुख्य शिवलिंग की रचना करते है।  इस पानी के बुलबुले के आकार के छोटे शिवलिंगों की संख्या गिनना बहुत मुश्किल है क्योंकि गणना कभी भी एक समान नहीं होती है।  पहली बार गिनने के बाद, अगर यह गिनती 12 है, तो जब हम फिर से गिनती करते हैं, तो यह गिनती 12 नहीं होती है, इसलिए इसकी संख्या को गिनना  असंभव जेसा ही है।  इसके अलावा, इस शिवलिंग के मध्य में भगवान शिव की कृपा से चंद्रमा के चंद्रदर्शन होता है और इस चंद्रदर्शन का प्रभाव लगातार बदलता रहता है। यह चंद्रदर्शन  दिन में कम से कम दो बार बदल  जाता है।  अमास के साथ-साथ श्रवण मास के दौरान यह चंद्रदर्शन लुप्त हो जाता है और वहाँ चंद्रदर्शन का सफेद हिस्सा काला हो जाता है, और पूनम के समय के साथ-साथ पूर्ण चंद्र दर्शन के समय में शिवलिंग पे चंद्र दर्शन में  भगवान शिव की जटा तथा ॐ दिखाई देता है।  जय चंद्रमौलेश्वर  हर हर महादेव  जय भोले।
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